खाकी: नीरज पांडे की लोकप्रिय खाकी फ्रेंचाइजी का दूसरा हिस्सा, खाकी: द बंगाल चैप्टर, 20 मार्च 2025 को रिलीज हो चुका है और यह चर्चा का विषय बन गया है। नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही यह सीरीज हमें बिहार की कच्ची गलियों से कोलकाता की अंधेरी दुनिया में ले जाती है, जो 2000 के दशक की पृष्ठभूमि पर आधारित है।
पहला चैप्टर अपनी वास्तविक कहानी से दर्शकों का दिल जीत चुका था, लेकिन इस बार यह काल्पनिक कहानी क्या उतना ही जोश ला पाई? क्या यह आपकी उम्मीदों पर खरी उतरती है या धीमी रफ्तार में फंस जाती है? आइए, इस स्पॉइलर-फ्री समीक्षा में इसे आसान और दोस्ताना अंदाज में समझते हैं, ताकि आप तय कर सकें कि यह आपकी वीकेंड बिंज लिस्ट में जगह बनाने लायक है या नहीं!
नया चैप्टर
अगर आपने खाकी: द बिहार चैप्टर देखा है, तो आपको याद होगा कि यह आईपीएस ऑफिसर अमित लोढ़ा की किताब पर आधारित थी। करण टैकर और अविनाश तिवारी की जोरदार एक्टिंग ने उस कहानी को जिंदा कर दिया था, जो सच्ची घटनाओं से प्रेरित थी। लेकिन द बंगाल चैप्टर में नीरज पांडे ने रास्ता बदल लिया है। इस बार कोई वास्तविक कहानी नहीं, बल्कि एक पूरी तरह से काल्पनिक दुनिया रची गई है। यह एक साहसिक कदम है, जो इस सीरीज को एक नया और अनोखा रोमांच देने का वादा करता है।
इस बार कहानी पश्चिम बंगाल की है—वह राज्य जो अपनी जीवंत संस्कृति, स्वादिष्ट रसगुल्लों और रवींद्र संगीत के लिए जाना जाता है। लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि यह सीरीज कोलकाता की खूबसूरती को दिखाएगी, तो तैयार हो जाइए एक बिल्कुल अलग अनुभव के लिए। नीरज पांडे ने यहाँ बंगाल के उस अंधेरे चेहरे को पेश किया है, जहाँ खूनखराबा, सत्ता का खेल और अपराध की दुनिया हर कदम पर आपको चौंकाती है।
कहानी का ताना-बाना: अपराध और कानून का खेल
खाकी: द बंगाल चैप्टर की कहानी 2000 के दशक के कोलकाता में शुरू होती है। यहाँ हमें गैंगस्टर शंकर बरुआ उर्फ बाघा (सास्वत चटर्जी) का आतंक देखने को मिलता है, जो पूरे पश्चिम बंगाल में अपने गैरकानूनी धंधों का जाल फैलाए हुए है। उसके साथ है एक प्रभावशाली राजनेता बरुण रॉय (प्रसेनजीत चटर्जी), जो इस अपराधी साम्राज्य को और मजबूत करता है। बाघा के दो वफादार सिपहसालार, सागर तालुकदार (ऋत्विक भौमिक) और रंजीत ठाकुर (आदिल जफर खान), राज्य में तबाही मचाते हैं। जब अपराध अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है, तब आईपीएस ऑफिसर अर्जुन मैत्रा (जीत) को इस साम्राज्य को नेस्तनाबूद करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है।
कहानी की शुरुआत थोड़ी सुस्त लगती है। पहले कुछ एपिसोड में ऐसा महसूस होता है कि सीरीज अपना रंग जमाने में वक्त ले रही है। लेकिन जैसे-जैसे यह आगे बढ़ती है, बीच में रफ्तार पकड़ती है और आपको अपनी सीट से बाँध लेती है। अपराध, भ्रष्टाचार और कानून के बीच की यह जंग कई जगह आपको रोमांचित करती है, लेकिन कुछ मौकों पर ऐसा भी लगता है कि यह और तेज हो सकती थी।
अभिनय: सितारों की चमक जो सीरीज को बचाती है

अगर इस सीरीज में कुछ ऐसा है जो हर हाल में आपका ध्यान खींचेगा, तो वो है इसका शानदार स्टारकास्ट। सास्वत चटर्जी ने बाघा के किरदार में जान डाल दी है। उनकी हरकतें और ठंडी क्रूरता आपको डराती भी है और हैरान भी करती है। प्रसेनजीत चटर्जी एक भ्रष्ट नेता के रोल में कमाल के हैं—उनकी मौजूदगी स्क्रीन पर वजन डालती है। जीत का किरदार अर्जुन मैत्रा एक ईमानदार और जुझारू पुलिसवाले का है, और वो इस रोल में पूरी तरह फिट बैठते हैं। उनके एक्शन सीन्स और भावनात्मक पल आपको जोड़े रखते हैं।
ऋत्विक भौमिक और आदिल जफर खान भी अपने किरदारों में दमदार हैं। ये दोनों बाघा के गुर्गों के रूप में कहानी में खौफ का माहौल बनाते हैं। हर कलाकार ने अपने हिस्से का काम बखूबी निभाया है, और यही वजह है कि धीमी गति के बावजूद आप स्क्रीन से नजर नहीं हटा पाते।
क्या अच्छा है?
- शानदार अभिनय: सास्वत, प्रसेनजीत और जीत की तिकड़ी इस सीरीज की जान है। हर किरदार में गहराई और सच्चाई झलकती है।
- कोलकाता का माहौल: 2000 के दशक के कोलकाता को जिस तरह दिखाया गया है—उसकी गलियाँ, उसका शोर, और उसका अंधेरा—वह आपको कहानी में डुबो देता है।
- रोमांचक मोड़: बीच के एपिसोड में कहानी में आने वाले ट्विस्ट और टर्न्स आपको बांधे रखते हैं।
क्या खटकता है?
- धीमी शुरुआत: पहले कुछ एपिसोड में कहानी बहुत धीरे चलती है, जिससे बेसब्री बढ़ सकती है।
- पहले चैप्टर से तुलना: द बिहार चैप्टर की तेज रफ्तार और सच्चाई के मुकाबले यह थोड़ा कमजोर लगता है।
- कुछ ढीले पल: कहानी में कुछ जगह ऐसा लगता है कि इसे और कसा जा सकता था।
तकनीकी पक्ष: कैमरा, म्यूजिक और सेटअप

नीरज पांडे की खासियत है कि वो अपनी कहानियों को विजुअली मजबूत बनाते हैं, और यहाँ भी ऐसा ही है। कोलकाता की सड़कों को कैमरे ने जिस तरह कैद किया है, वो आपको उस दौर में ले जाता है। बैकग्राउंड म्यूजिक कहानी के मूड को बढ़ाता है, खासकर एक्शन और सस्पेंस के सीन में। सेट डिजाइन और कॉस्ट्यूम्स भी उस वक्त के बंगाल को सही तरीके से पेश करते हैं। हालांकि, कुछ सीन में एडिटिंग थोड़ी टाइट हो सकती थी, ताकि कहानी का फ्लो और बेहतर हो।
क्या यह देखने लायक है?
अगर आप नीरज पांडे के फैन हैं या आपको क्राइम ड्रामा पसंद है, तो खाकी: द बंगाल चैप्टर आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है। यह सीरीज भले ही शुरुआत में थोड़ी सुस्त लगे, लेकिन इसके किरदार और बीच का रोमांच इसे देखने की वजह देते हैं। हाँ, अगर आप द बिहार चैप्टर की तेज रफ्तार और सच्चाई की उम्मीद करेंगे, तो शायद थोड़ी निराशा हो सकती है। लेकिन अगर आप धैर्य रखते हैं, तो यह आपको एक अलग तरह का रोमांच देगी।
कुल मिलाकर, यह एक ऐसी सीरीज है जो अपने शानदार अभिनय और माहौल के दम पर खड़ी है, भले ही इसकी गति हर वक्त आपको बांधे न रखे। तो, पॉपकॉर्न तैयार करें और इस बंगाली अपराध की दुनिया में गोता लगाएँ—शायद आपको यह उतना ही पसंद आए, जितना इसके सितारों का जादू!
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नेटफ्लिक्स पर कब और कैसे देखें?
खाकी: द बंगाल चैप्टर 20 मार्च 2025 से नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है। अपने दोस्तों और परिवार के साथ इसे देखें और हमें बताएं कि आपको यह कैसी लगी। क्या यह आपकी उम्मीदों पर खरी उतरी, या कुछ और चाहिए था? अपनी राय कमेंट में जरूर शेयर करें!
